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Lakshadweep: क्या टूरिस्ट्स के लिए सच में तैयार है लक्षद्वीप? जानिए जमीनी हकीकत

Lakshadweep: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद मालदीव के टूरिज्म सेक्टर को बड़ा झटका लगा है. इसकी वजह ये है कि भारतीयों ने मालदीव का बायकॉट करना शुरू कर दिया है.
देश की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी हुई है और पिछले साल 2 लाख भारतीय वहां छुट्टियां मनाने गए थे. ऐसे में भारतीयों के मालदीव नहीं जाने से उसकी अर्थव्यवस्था को झटका तो जरूर लगने वाला है.
हालांकि, इन सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा लक्षद्वीप की हो रही है, क्योंकि लोग अब इसे मालदीव के संभावित विकल्प के तौर पर देख रहे हैं. जिस तरह के बीच, पेड़ और पर्यावरण मालदीव में मौजूद है, ठीक वैसा ही आपको लक्षद्वीप में भी देखने को मिलेगा. कोरल रीफ से लेकर लगून तक, जो चीजें आपको मालदीव में देखने को मिलती है, वही चीजें आप लक्षद्वीप में भी पाएंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में लक्षद्वीप पर्यटकों के लिए तैयार है.
पर्यटकों के लिए अभी क्या सुविधाएं हैं?
लक्षद्वीप में पर्यटकों के ठहरने के लिए 97 यूनिट्स मौजूद हैं, जिसमें 61 लकड़ी के कॉटेज मौजूद हैं, जो तीन द्वीपों पर फैले हुए हैं. इसमें बंगाराम में 31 नए लकड़ी के कॉटेज, मिनिकॉय में 20 कॉटेज और कावारत्ती में 16-बेड वाला रिसॉर्ट शामिल है. थिन्नकारा में लगभग 15 ऑफ-व्हाइट टेंटाइल टेंटों का नवीनीकरण कार्य प्रगति पर है. सुहेली में आगामी ताज प्रॉपर्टी में 60 समुद्री विला और 50 वॉटर विला में 110 कमरे होंगे, जबकि कदमत में होटल में 35 वॉटर विला सहित 110 कमरे होंगे.
लक्षद्वीप में चुनौतियां क्या हैं?
केंद्रशासित प्रदेश में वैसे तो कई चुनौतियां हैं, मगर कुछ ऐसी हैं, जिनसे अभी पार पाना बेहद जरूरी है. सबसे पहली चुनौती लक्षद्वीप का पारिस्थितिक तंत्र है. यहां पर वाटर विला या लैगून विला बनाने हैं, तो इसके लिए सबसे पहले पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करना पड़ेगा. लक्षद्वीप में हवा तेज चलती है, जिसकी वजह से लैगून विला की नींव को मजबूत बनाने के लिए समुद्री में काफी गहराई तक इसे स्थापित करना होगा. मगर इसके चलते कोरल रीफ को नुकसान पहुंचता है.
दूसरी चुनौती लक्षद्वीप तक कनेक्टिविटी है. जहां मालदीव के लिए आपको डायरेक्ट फ्लाइट आसानी से मिल जाती है. मगर लक्षद्वीप के केस में ऐसा नहीं है. लक्षद्वीप दो तरीकों से पहुंचा जा सकता है, जिसमें पहला हवाई मार्ग और दूसरा समुद्री मार्ग है. हवाई मार्ग के लिए पहले कोच्चि जाना होगा और फिर वहां से अयालंस एयर फ्लाइट के जरिए अगाती जाया जा सकता है. कोच्चि और लक्षद्वीप के बीच समुद्री मार्ग पर तीन जहाज सेवाओं के जरिए भी जा सकते हैं, जिसमें 18 घंटे लगते हैं.
तीसरी चुनौती लक्षद्वीप में द्वीपों की संख्या का कम होना है. लक्षद्वीप में 36 द्वीप हैं, जबकि मालदीव में द्वीपों की संख्या 300 से ज्यादा है. मालदीव के ज्यादातर द्वीपों को रिसॉर्ट में कंवर्ट कर दिया गया है. मगर लक्षद्वीप में ऐसा करना मुमकिन नहीं है. वहां के 10 द्वीपों पर लोग रहते हैं और बाकी पर रहने वाला कोई नहीं है. इन पर सरकार का कंट्रोल है. लक्षद्वीप सुरक्षा के लिहाज से भी एक अहम जगह है. इसलिए सरकार को इसे टूरिस्ट स्पॉट बनाने से पहले काफी विचार भी करना पड़ेगा.
इन चुनौतियों से भी निपटना है जरूरी
क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक, लक्षद्वीप में वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम नहीं है, जिसकी वजह से कूड़ा भी फैलता है. यहां के लोगों के गर्मियों में पानी की कमी से जूझना पड़ता है. ऊपर से स्वास्थ्य सुविधाओं की भी अच्छी व्यवस्था नहीं है. ईंधन की कमी होना भी एक प्रमुख है, जिस पर ध्यान देने की काफी जरूरत है. एक निवासी ने बताया कि हमारे आगे कई समस्याएं हैं. यहां वेस्ट मैनेजमेंट की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. पीने का पानी प्रचुर मात्रा में नहीं है. दैनिक उपयोग के लिए समुद्री जल को शुद्ध किया जाता है. वास्तव में, मार्च से जब तापमान बढ़ता है तो हमें पानी की कमी से जूझना पड़ता है.
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सीहोर में ब्रिज निर्माण के लिए खुदाई करते समय धंसी मिट्टी, 3 मजदूरों की दबने से मौत

मध्य प्रदेश के सीहोर में सोमवार (23 दिसंबर) को बड़ी घटना हो गई। ब्रिज निर्माण के लिए खुदाई करते समय अचानक मिट्टी धंस गई। दबने से तीन मजदूरों की मौत हो गई। एक को सुरक्षित निकाल लिया।
मध्य प्रदेश के सीहोर में सोमवार (23 दिसंबर) को बड़ी घटना हो गई। बुधनी में ब्रिज का निर्माण कार्य चल रहा है। पुलिया के पास खुदाई करते समय अचानक मिट्टी धंस गई। मिट्टी में दबने से 3 मजदूरों की मौत हो गई। एक को रेस्क्यू टीम ने सुरक्षित निकालकर अस्पताल पहुंचाया है। घटना शाहगंज थाना क्षेत्र के सियागहन गांव की है। पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।
रेस्क्यू कर एक को सुरक्षित बाहर निकाला
शाहगंज थाना क्षेत्र के सियागहन गांव में ब्रिज का निर्माण कार्य चल रहा है। सोमवार को चार मजदूर निर्माण के लिए दूसरी पुलिया के पास से मिट्टी खोद रहे थे। खुदाई के समय अचानक मिट्टी धंस गई। सूचना मिलने पर पुलिस और प्रशासन की टीम पहुंची। रेस्क्यू टीम ने एक मजदूर को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। तीन की मौत हो गई।
हादसे में इनकी हुई मौत
पुलिस के मुताबिक, लटेरी (विदिशा) निवासी करण (18) पिता घनश्याम, रामकृष्ण उर्फ रामू (32) पिता मांगीलाल गौड और गुना के रहने वाले भगवान लाल पिता बरसादी गौड़ की मौत हो गई। लटेरी निवासी वीरेंद्र पिता सुखराम गौड (25) को सुरक्षित बाहर निकाला गया। वीरेंद्र को नर्मदापुरम रेफर किया है।
राजलक्ष्मी कंस्ट्रक्शन करवा रहा निर्माण
प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक, राजलक्ष्मी कंस्ट्रक्शन पुलिया का निर्माण कार्य करा रहा है। पुलिया सियागहन और मंगरोल गांव को जोड़ती है। पुलिया की रिटेनिंग वॉल बनाते समय पहले से बनी रोड की रिटेनिंग वॉल का स्लैब धंस गया। पोकलेन मशीन से मिट्टी हटाकर चारों मजदूरों को बाहर निकाला गया, लेकिन तीन की मौत हो गई। वीरेंद्र का इलाज चल रहा है।
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इंजीनियर अतुल के बेटे की कस्टडी को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, 4 साल के बच्चे की तलाश जारी

Atul Subhash Suicide: एआई इंजीनियर का परिवार बिहार के समस्तीपुर में रहता है। निकिता और अतुल का 4 साल का एक बेटा है। अतुल के पिता पीएम मोदी से पोते की कस्टडी दिलाने की गुहार लगा चुके हैं।
Atul Subhash Suicide: बेंगलुरु के इंजीनियर अतुल सुभाष की मां अंजू मोदी ने अपने 4 साल के पोते की कस्टडी के लिए शुक्रवार (20 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। सुभाष ने अपने सुसाइड नोट और वीडियो में पत्नी निकिता सिंघानिया और ससुराल पक्ष पर उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। जिसके बाद बेंगलुरु पुलिस ने निकिता समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बता दें कि एआई इंजीनियर अतुल ने पिछले 9 दिसंबर को बेंगलुरु स्थित अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
पोते के ठिकाने को लेकर गहरी चिंता
अंजू मोदी ने पोते के ठिकाने का पता लगाने और उसकी कस्टडी सुनिश्चित करने के लिए हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की है। इसमें दावा है कि न तो सुभाष की अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य, जो फिलहाल हिरासत में हैं, ने बच्चे के ठिकाने की जानकारी दी है। दूसरी ओर, निकिता ने पुलिस से कहा था कि उसका बेटा फरीदाबाद के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई कर रहा है और उसके चाचा सुशील सिंघानिया की देखरेख में है। लेकिन सुशील ने बच्चे की स्थिति की जानकारी होने से इनकार किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा
जस्टिस बीवी नागरथना और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की सरकारों को नोटिस जारी कर बच्चे की स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को होगी।
अतुल सुभाष की आत्महत्या से जुड़ी गिरफ्तारी
इंजीनियर सुभाष की आत्महत्या के मामले में कई गिरफ्तारियां हुई हैं। पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया और साले अनुराग सिंघानिया को बेंगलुरु पुलिस ने 16 दिसंबर को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने सुभाष के छोड़े गए सुसाइड नोट और वीडियो के आधार पर तीनों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है। अभी वे न्यायिक हिरासत में हैं।
सिंघानिया फैमिली ने जमानत याचिका लगाई
निकिता सिंघानिया के परिजनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले में अग्रिम जमानत के लिए अपील की है। वरिष्ठ वकील मनीष तिवारी ने सुशील सिंघानिया की उम्र (69 वर्ष) और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का हवाला देते हुए आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का दावा किया। जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव ने सुशील को 50 हजार रुपए के निजी मुचलके और सख्त शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दी है, जिसमें पुलिस जांच के लिए उपलब्ध रहना और पासपोर्ट सरेंडर करना शामिल है।
अतुल सुभाष के परिवार की क्या है मांग?
इंजीनियर अतुल सुभाष के परिवार ने आरोप लगाया कि निकिता और उनके परिवार ने झूठे कानूनी मामलों और पैसों की मांग कर अतुल को बुरी तरह प्रताड़ित किया। पिता पवन कुमार और भाई बिकास कुमार ने अतुल की अस्थियों को तब तक न बहाने की कसम खाई है जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता।
भाई बिकास कुमार ने कहा- ‘जो लोग इस घटना के पीछे हैं, उन्हें भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए। जब तक हमारे खिलाफ झूठे मामले वापस नहीं लिए जाते, हमें न्याय नहीं मिलेगा। हमारा संघर्ष जारी रहेगा।’
बिकास ने अपने भतीजे की सुरक्षा पर भी चिंता जताई और कहा- ‘मुझे अपने भतीजे (अतुल के बेटे) की सुरक्षा की चिंता है। हमने उसे हाल की तस्वीरों में नहीं देखा है। हम उसके ठिकाने की जानकारी चाहते हैं और उसकी कस्टडी जल्द से जल्द चाहते हैं।’
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10 वंदे भारत स्लीपर ट्रेनें निर्माणाधीन, 200 रेक का निर्माण प्रौद्योगिकी साझेदारों के जिम्मे: अश्विनी वैष्णव

- विश्व स्तरीय यात्रा के अनुभव के लिए भारतीय रेल अप्रैल 2018 से केवल एलएचबी कोच बना रहा है; 2004-14 की तुलना में 2014-24 के दौरान निर्मित एलएचबी कोचों की संख्या 16 गुना से अधिक है।
- “सुगम्य भारत मिशन” के हिस्से के रूप में भारतीय रेल दिव्यांगजनों और कम गतिशीलता वाले यात्रियों को अधिकांश मेल/एक्सप्रेस रेलगाड़ियों और वंदे भारत ट्रेनों में व्यापक सुविधाएं प्रदान करता है।
वर्तमान में देश में लंबी और मध्यम दूरी की यात्रा के लिए 10 वंदे भारत स्लीपर ट्रेनें निर्माणाधीन हैं। पहला प्रोटोटाइप निर्मित हो चुका है और इसका फील्ड ट्रायल किया जाएगा। इसके अलावा, 200 वंदे भारत स्लीपर रेक के निर्माण का काम भी प्रौद्योगिकी भागीदारों को सौंपा गया है। सभी रेलगाड़ियों के उपयोग में आने की समयसीमा उनके सफल परीक्षणों पर निर्भर है। 02 दिसंबर 2024 तक, देश भर में छोटी और मध्यम दूरी की यात्रा के लिए भारतीय रेल के ब्रॉड गेज विद्युतीकृत नेटवर्क पर 136 वंदे भारत रेलगाड़ी सेवाएं जारी हैं।
रेल, सूचना एवं प्रसारण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में एक वक्तव्य में कहा कि विश्व स्तरीय यात्रा का अनुभव प्रदान करने के लिए भारतीय रेल के ब्रॉड गेज विद्युतीकृत नेटवर्क पर वर्तमान में चेयर कार वाली 136 वंदे भारत रेल सेवाएं जारी हैं। अक्टूबर 2024 तक वंदे भारत एक्सप्रेस रेलगाड़ियों की कुल क्षमता 100% से अधिक होगी।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारतीय रेल की उत्पादन इकाइयां अप्रैल 2018 से केवल एलएचबी कोच बना रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में एलएचबी कोच का उत्पादन लगातार बढ़ा है। 2014-24 के दौरान निर्मित एलएचबी कोच की संख्या 2004-14 के दौरान निर्मित (2,337) संख्या से 16 गुना (36,933) अधिक है। भारतीय रेल (आईआर) ने एलएचबी कोचों की भरमार कर दी है जो तकनीकी रूप से बेहतर हैं और इनमें एंटी क्लाइम्बिंग व्यवस्था, विफलता संकेत प्रणाली के साथ एयर सस्पेंशन और कम संक्षारक शेल जैसी विशेषताएं हैं।
“सुगम्य भारत मिशन” (सुलभ भारत अभियान) के हिस्से के रूप में, भारतीय रेल दिव्यांगजनों और कम गतिशीलता वाले यात्रियों के लिए सुगमता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत, रैंप, सुलभ पार्किंग, ब्रेल और स्पर्शनीय संकेत, कम ऊंचाई वाले काउंटर और लिफ्ट/एस्कलेटर जैसी व्यापक सुविधाएँ प्रदान की गई हैं।
नवंबर 2024 तक भारतीय रेल ने 399 स्टेशनों पर 1,512 एस्कलेटर और 609 स्टेशनों पर 1,607 लिफ्टें स्थापित की थीं जो पिछले दशक की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है – क्रमशः 9 और 14 गुना की वृद्धि। इसके अलावा, अधिकांश मेल और एक्सप्रेस रेलगाड़ियों में चौड़े प्रवेश द्वार, सुलभ शौचालय और व्हीलचेयर पार्किंग वाले कोच उपलब्ध हैं, जबकि वंदे भारत रेलगाड़ियां दिव्यांगजनों के लिए स्वचालित दरवाजे, निर्धारित स्थान और ब्रेल साइनेज जैसी सुविधाओं के साथ बेहतर सुगमता प्रदान करती हैं।
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